1. भारतीय कार्यस्थल में मानसिक स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति
आज के समय में, भारतीय कंपनियों और कॉर्पोरेट संस्कृति में मानसिक स्वास्थ्य एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। बहुत से कर्मचारियों को अपने काम के दबाव, लंबी कार्य घंटे, और सामाजिक अपेक्षाओं के कारण मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। भारत में कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ी है, लेकिन अभी भी इसे खुलकर स्वीकारना और इसके बारे में बात करना मुश्किल माना जाता है।
भारतीय कार्यस्थल की चुनौतियाँ
भारतीय समाज में काम को जीवन का मुख्य हिस्सा माना जाता है। इससे कर्मचारियों पर अधिक प्रदर्शन करने का दबाव रहता है। साथ ही, “कड़ी मेहनत ही सफलता की कुंजी है” जैसी सोच कर्मचारियों को थकावट और तनाव की ओर ले जाती है। कई बार कर्मचारी अपनी समस्याओं को साझा नहीं करते क्योंकि उन्हें डर रहता है कि इससे उनकी छवि या करियर पर असर पड़ेगा।
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कुछ सामान्य समस्याएँ
समस्या | संभावित कारण | प्रभाव |
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तनाव (Stress) | काम का बोझ, लक्ष्य पूरे करने का दबाव | नींद न आना, चिड़चिड़ापन, कम उत्पादकता |
डिप्रेशन (Depression) | अकेलापन, असफलता की चिंता, पारिवारिक दबाव | उत्साह में कमी, आत्मविश्वास की कमी, आत्महत्या के विचार |
बर्नआउट (Burnout) | लगातार ओवरटाइम, छुट्टियों की कमी | शारीरिक-मानसिक थकावट, काम में रुचि कम होना |
सामाजिक मान्यताओं का प्रभाव
भारतीय परिवारों और समाज में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बातें अक्सर नजरअंदाज की जाती हैं। बहुत बार इसे कमजोरी या आलस्य समझ लिया जाता है। इस वजह से कर्मचारी मनोवैज्ञानिक मदद लेने से कतराते हैं और समस्या गंभीर हो सकती है। कॉर्पोरेट कल्चर में भी “हमेशा मजबूत बने रहो” जैसी सोच हावी रहती है जिससे लोग खुलकर अपनी भावनाएँ व्यक्त नहीं कर पाते।
कार्यालयीन माहौल की भूमिका
कई भारतीय कंपनियाँ अब वेलनेस प्रोग्राम शुरू कर रही हैं, लेकिन अभी भी बहुत सी कंपनियाँ इस ओर ध्यान नहीं देतीं। ऑफिस में सपोर्टिव वातावरण न होना, बॉस या सहकर्मियों द्वारा समझदारी की कमी, और कड़े डेडलाइन जैसे कारण मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा छुट्टी लेने पर सवाल उठाना या मज़ाक उड़ाना भी समस्या को बढ़ाता है।
2. आत्महत्या के प्रमुख कारण: भारतीय परिप्रेक्ष्य
भारतीय कार्यस्थलों में आत्महत्या के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारण
भारत में कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या एक गंभीर विषय है। भारतीय समाज, संस्कृति और अर्थव्यवस्था के विशेष संदर्भ में, कुछ कारण ऐसे हैं जो कामकाजी व्यक्तियों को मानसिक दबाव और निराशा की ओर ले जाते हैं। नीचे दिए गए मुख्य कारणों को समझना बहुत जरूरी है:
कारण | संक्षिप्त विवरण |
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नौकरी की असुरक्षा | तेजी से बदलते बाजार, कॉर्पोरेट छंटनी और अनुबंध आधारित रोजगार के कारण कई कर्मचारियों को अपनी नौकरी खोने का डर सताता रहता है। इससे लगातार तनाव और चिंता बनी रहती है। |
प्रदर्शन दबाव | भारतीय कार्यस्थलों में लक्ष्यों और समयसीमा को लेकर भारी दबाव होता है। उत्कृष्ट प्रदर्शन की अपेक्षा, बोनस और प्रमोशन की दौड़, कर्मचारियों में थकान और निराशा पैदा कर सकती है। |
पारिवारिक जिम्मेदारियाँ | भारत में अक्सर परिवार का आर्थिक बोझ एक ही व्यक्ति पर होता है। माता-पिता, जीवनसाथी, बच्चों की जरूरतें पूरी करने का दायित्व भी तनाव का कारण बनता है। |
सामाजिक कलंक (Social Stigma) | मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर समाज में जागरूकता की कमी है। लोग अपनी समस्याएँ खुलकर साझा नहीं कर पाते, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाती है। सहायता माँगने से डर लगता है कि कहीं समाज गलत न समझे। |
कार्यालयीय राजनीति (Office Politics) | कई बार प्रमोशन, वेतन वृद्धि या अन्य लाभों के लिए ऑफिस में राजनीति चलती रहती है, जिससे कर्मचारियों को अनावश्यक मानसिक तनाव झेलना पड़ता है। |
कार्य-जीवन संतुलन की कमी | लंबे कार्य घंटे, यातायात की समस्या तथा डिजिटल डिवाइस के बढ़ते उपयोग से निजी जीवन के लिए समय नहीं बचता, जिससे मानसिक थकावट होती है। |
भारतीय संस्कृति और आत्महत्या संबंधी खास बातें
भारतीय संस्कृति सामूहिकता (collectivism) पर आधारित है, जिसमें व्यक्तिगत भावनाओं को अक्सर दबा दिया जाता है। परिवार की इज्जत और सामाजिक छवि बनाए रखना महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे माहौल में यदि कोई मानसिक परेशानी या आत्महत्या जैसे विचारों से जूझ रहा हो, तो वह खुलकर बात करने से हिचकिचाता है। मदद मांगना कमजोरी मानी जाती है, जिससे समस्या गहराती जाती है।
इसके अलावा, धार्मिक विश्वास भी कई बार लोगों को यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि मानसिक समस्याएँ “पाप” या “कमजोरी” हैं, जिससे वे आवश्यक समर्थन प्राप्त नहीं कर पाते। यह स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलती है, लेकिन शहरी इलाकों में भी कम नहीं है।
इसलिए भारतीय कार्यस्थलों पर आत्महत्या रोकथाम के लिए सिर्फ नीतियाँ बनाना काफी नहीं, बल्कि सामाजिक सोच में बदलाव लाना भी जरूरी है।
3. मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता
भारतीय कार्य संस्कृति में मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना क्यों जरूरी है?
भारत में पारंपरिक रूप से कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को कम महत्व दिया जाता रहा है। अधिकतर लोग केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देते हैं, जबकि मानसिक तनाव और चिंता जैसे मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन आज के प्रतिस्पर्धी माहौल में मानसिक स्वास्थ्य उतना ही महत्वपूर्ण हो गया है जितना कि शारीरिक स्वास्थ्य। जब कर्मचारी मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं, तो वे अधिक उत्पादक, रचनात्मक और संतुलित रहते हैं। इससे कंपनी के प्रदर्शन पर भी सीधा असर पड़ता है।
खुले संवाद को बढ़ावा देना
भारतीय कार्यस्थल पर अक्सर मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर बात करना एक टैबू माना जाता है। कर्मचारियों को डर रहता है कि अगर वे अपने मानसिक हालात साझा करेंगे तो उनका मजाक उड़ाया जाएगा या उन्हें कमजोर समझा जाएगा। ऐसे में जरूरी है कि प्रबंधन और टीम लीडर एक ऐसा वातावरण बनाएं जिसमें हर कोई खुलकर अपनी बात रख सके।
संवाद बढ़ाने के कुछ आसान उपाय:
उपाय | विवरण |
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ओपन डोर पॉलिसी | कर्मचारी बिना झिझक अपने मुद्दे मैनेजमेंट से साझा कर सकते हैं |
मानसिक स्वास्थ्य वर्कशॉप्स | समय-समय पर प्रशिक्षण या काउंसलिंग सत्र आयोजित करें |
गोपनीयता का आश्वासन | कर्मचारियों की निजी जानकारी को सुरक्षित रखें |
व्यक्तिगत स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य को समझने का महत्व
हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखे। इसका मतलब यह नहीं कि केवल गंभीर समस्या होने पर ही सहायता ली जाए, बल्कि छोटी-छोटी बातों पर भी सतर्क रहना जरूरी है। नीचे कुछ बातें दी गई हैं जिनसे आप खुद की मानसिक स्थिति का आकलन कर सकते हैं:
संकेत | क्या करें? |
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लगातार थकान महसूस होना | आराम करें, जरूरत पड़े तो छुट्टी लें |
काम में मन न लगना | खुद से बात करें या किसी साथी से शेयर करें |
चिड़चिड़ापन या गुस्सा आना | मेडिटेशन या ब्रेक लें, संभव हो तो प्रोफेशनल मदद लें |
प्रबंधन की भूमिका
प्रबंधन और वरिष्ठ नेतृत्व को चाहिए कि वे न केवल खुद इन बातों को अपनाएं, बल्कि बाकी कर्मचारियों को भी प्रोत्साहित करें। एक सकारात्मक और सहयोगी माहौल बनाकर ही हम भारतीय कार्यस्थलों में आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को कम कर सकते हैं। इसलिए समय आ गया है कि हम सब मिलकर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाएं और इसे प्राथमिकता दें।
4. प्रभावी रोकथाम उपाय: प्रबंधकीय और संगठनात्मक दृष्टिकोण
भारतीय कार्यस्थल में मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठोस कदम
भारत जैसे विविधता से भरे देश में, वर्कप्लेस पर आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं आज एक गंभीर चुनौती बन चुकी हैं। इसे सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि प्रबंधन और संगठन की जिम्मेदारी के तौर पर देखना जरूरी है। नीचे कुछ ऐसे कारगर उपाय दिए गए हैं, जिन्हें भारतीय कंपनियां अपनाकर अपने कर्मचारियों की भलाई सुनिश्चित कर सकती हैं।
इम्प्लोयी असिस्टेंस प्रोग्राम्स (EAPs)
EAPs कर्मचारियों को काउंसलिंग, इमोशनल सपोर्ट और क्राइसिस मैनेजमेंट जैसी सुविधाएं उपलब्ध करवाते हैं। भारत में कई बड़ी IT कंपनियां और कॉर्पोरेट हाउस इसे लागू कर चुके हैं। EAP को अपनाने के लिए स्थानीय भाषा में सेवाएं देना, परिवार को भी इसमें शामिल करना और गोपनीयता बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
उपाय | लाभ | भारतीय संदर्भ में विशेष बातें |
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इम्प्लोयी असिस्टेंस प्रोग्राम्स (EAPs) | मानसिक समर्थन, काउंसलिंग | स्थानीय भाषा, परिवार की भागीदारी, गोपनीयता |
मानसिक स्वास्थ्य ट्रेनिंग | स्टाफ की जागरूकता बढ़ाना | सांस्कृतिक संवेदनशीलता, उदाहरणों का उपयोग |
मानव संसाधन नीतियाँ | समावेशी एवं लचीली पॉलिसीज़ | लीव पॉलिसी, लचीलापन, ओपन डोर नीति |
सहायक वर्ककल्चर | कर्मचारी संतुष्टि एवं सुरक्षा भावना | टीमवर्क को बढ़ावा, बिना भेदभाव के संवाद |
मानसिक स्वास्थ्य ट्रेनिंग एवं जागरूकता कार्यक्रम
प्रबंधकों और टीम लीडर्स के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर ट्रेनिंग जरूरी है ताकि वे शुरुआती संकेत पहचान सकें। भारतीय कार्यस्थलों पर इस ट्रेनिंग में स्थानीय उदाहरणों, व्यावहारिक रोल-प्ले और केस स्टडीज का इस्तेमाल फायदेमंद रहेगा। इससे स्टिग्मा कम होता है और कर्मचारी खुलकर बात कर पाते हैं।
ट्रेनिंग कार्यक्रम कैसे बनाएं:
- स्थानीय भाषाओं में मॉड्यूल्स तैयार करें
- महत्वपूर्ण त्योहारों या आयोजनों के दौरान विशेष सत्र रखें
- वरिष्ठ नेतृत्व को भी इनिशिएटिव में शामिल करें
- कर्मचारियों की गुमनाम फीडबैक लें और उस पर काम करें
मानव संसाधन नीतियाँ: समावेशी और लचीला रवैया अपनाएं
HR नीतियाँ ऐसी होनी चाहिए जिनमें काम के घंटे लचीले हों, मेडिकल लीव आसान हो और जरूरत पड़ने पर वर्क फ्रॉम होम की सुविधा मिले। भारतीय परिवार व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए, परिवारिक जिम्मेदारियों के लिए भी छुट्टियों का प्रावधान होना चाहिए। साथ ही, सभी कर्मचारियों को समान अवसर मिलें, यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है।
HR नीतियों के लिए सुझाव:
- लीव पॉलिसी: मानसिक स्वास्थ्य के लिए विशेष अवकाश दे सकते हैं
- ओपन डोर पॉलिसी: किसी भी स्तर का कर्मचारी अपनी बात साझा कर सके
- LGBTQ+ इन्क्लूजन: सभी के लिए सुरक्षित माहौल
- गोपनीयता: हेल्थ डेटा पूरी तरह सुरक्षित रखा जाए
सहायक वर्ककल्चर: टीमवर्क और संवाद को बढ़ावा दें
भारतीय संस्कृति में सामूहिकता (collectivism) की भावना होती है। इसे ध्यान में रखते हुए टीम बिल्डिंग एक्टिविटीज़, रेगुलर ग्रुप डिस्कशन और पीयर सपोर्ट नेटवर्क बनाना चाहिए ताकि हर कर्मचारी अकेला महसूस न करे। ऑफिस में नियमित “चाय पे चर्चा” जैसे अनौपचारिक संवाद भी मददगार साबित होते हैं।
संस्थान कैसे आगे बढ़ सकते हैं?
- EAPs और मानसिक स्वास्थ्य ट्रेनिंग को HR नीति का हिस्सा बनाएं
- लीडर्स खुद पहल करके ओपन कल्चर को बढ़ावा दें
- स्थानीय जरूरतों के अनुसार समाधान तैयार करें
इन उपायों के संस्थागत रोडमैप से भारतीय कार्यस्थलों पर आत्महत्या रोकथाम और मानसिक स्वास्थ्य सुधार की दिशा में ठोस बदलाव संभव है।
5. भारतीय संदर्भ में सफल केस स्टडी और सर्वश्रेष्ठ प्रैक्टिसेज़
कुछ प्रमुख भारतीय कंपनियों की मानसिक स्वास्थ्य पहलों के उदाहरण
भारत में बहुत सी कंपनियाँ अब कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रही हैं। उन्होंने अपने कर्मचारियों के लिए कई तरह की अभिनव योजनाएँ शुरू की हैं, जिनका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। यहाँ हम कुछ ऐसे संगठनों की केस स्टडीज़ और उनकी सर्वश्रेष्ठ प्रैक्टिसेज़ का उल्लेख कर रहे हैं:
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS)
- मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन: TCS ने कर्मचारियों के लिए 24×7 काउंसलिंग हेल्पलाइन शुरू की है।
- वर्कशॉप्स और सेमिनार: नियमित रूप से तनाव प्रबंधन और माइंडफुलनेस पर वर्कशॉप्स आयोजित होती हैं।
- पर्सनलाइज्ड सपोर्ट: कर्मचारियों को व्यक्तिगत मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार भी उपलब्ध कराए जाते हैं।
इन्फोसिस
- Employee Assistance Program (EAP): इन्फोसिस ने EAP लॉन्च किया है, जिसमें गोपनीय काउंसलिंग, ऑनलाइन संसाधन और योग/मेडिटेशन सत्र शामिल हैं।
- फ्लेक्सिबल वर्किंग ऑवर्स: काम के घंटों में लचीलापन दिया जाता है ताकि कर्मचारी अपने जीवन और काम में संतुलन बना सकें।
महिंद्रा एंड महिंद्रा
- MHealthy Initiative: यह पहल कर्मचारियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर केंद्रित है, जिसमें रेगुलर स्क्रीनिंग, ऑन-साइट डॉक्टर और वेलनेस ऐप्स शामिल हैं।
- ओपन डोर पॉलिसी: मैनेजमेंट और कर्मचारियों के बीच संवाद को बढ़ावा देने के लिए खुला मंच प्रदान किया गया है।
मुख्य प्रैक्टिकल सीखें: भारतीय वर्कप्लेस के लिए मार्गदर्शन
कंपनी/संगठन | अभिनव पहल | प्रभाव/परिणाम |
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TCS | 24×7 हेल्पलाइन, वर्कशॉप्स, पर्सनल सपोर्ट | कर्मचारियों में स्ट्रेस कम, खुलकर बात करने की संस्कृति विकसित हुई |
इन्फोसिस | EAP, फ्लेक्सिबल ऑवर्स, योग/मेडिटेशन सत्र | वर्क-लाइफ बैलेंस बेहतर, मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी |
महिंद्रा एंड महिंद्रा | MHealthy Initiative, ओपन डोर पॉलिसी | समय रहते समस्याओं की पहचान, कर्मचारियों का आत्मविश्वास बढ़ा |
भारत में अपनाई जाने योग्य सर्वश्रेष्ठ प्रैक्टिसेज़
- खुला संवाद: कर्मचारियों को बिना डर या झिझक के अपनी भावनाएँ साझा करने का अवसर देना चाहिए।
- नियमित ट्रेनिंग: मैनेजर्स और टीम लीडर्स को मानसिक स्वास्थ्य पर प्रशिक्षण देना जरूरी है ताकि वे सही समय पर सहायता कर सकें।
- गोपनीयता बनाए रखना: जो भी कर्मचारी सहायता ले रहा है, उसकी जानकारी गोपनीय रखनी चाहिए।
- समावेशी नीतियाँ बनाना: HR नीतियों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं को सम्मिलित करना चाहिए।
- वर्क-लाइफ बैलेंस सुनिश्चित करना: ओवरटाइम कम करवाना और छुट्टियाँ लेने को प्रोत्साहित करना लाभकारी है।
इन सफल उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि जब कंपनियाँ मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेती हैं, तो उसका सकारात्मक असर पूरे कार्यस्थल पर पड़ता है। भारतीय संदर्भ में इन बेहतरीन प्रैक्टिसेज़ को अपनाकर आत्महत्या रोकथाम एवं बेहतर मानसिक स्वास्थ्य संभव है।
6. आगे की राह: रणनीतिक सुझाव और निष्कर्ष
भारतीय कार्यस्थल में आत्महत्या रोकथाम के लिए रणनीतिक पहल
भारतीय कार्यस्थलों में मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या की समस्या को गंभीरता से लेना बेहद जरूरी है। इसके लिए हमें नीति, संगठन और व्यक्तिगत स्तर पर विशेष कदम उठाने होंगे। नीचे दिए गए सुझावों पर अमल करके हम एक सुरक्षित और सहयोगी कार्य वातावरण बना सकते हैं।
नीतिगत (Policy Level) पहल
पहल | विवरण |
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मानसिक स्वास्थ्य नीति बनाना | हर कंपनी को स्पष्ट मानसिक स्वास्थ्य नीति तैयार करनी चाहिए जिसमें मानसिक रोग, सहायता और गोपनीयता के प्रावधान हों। |
लीव पॉलिसी सुधारना | मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी छुट्टियों की व्यवस्था हो ताकि कर्मचारी बिना डर के मदद ले सकें। |
नियमित जागरूकता अभियान | सरकार एवं कंपनियां मिलकर मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता अभियान चलाएं। |
संगठनात्मक (Organizational Level) पहल
पहल | विवरण |
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हेल्पलाइन और काउंसलिंग सेवाएं | कर्मचारियों के लिए 24×7 हेल्पलाइन और प्रोफेशनल काउंसलिंग उपलब्ध कराएं। |
ओपन डोर पॉलिसी लागू करें | प्रबंधन तक कर्मचारियों की पहुंच आसान बनाएं ताकि वे खुलकर अपनी बात कह सकें। |
मेंटरशिप प्रोग्राम शुरू करें | सीनियर स्टाफ मेंटर्स नियुक्त करें जो जूनियर कर्मचारियों का मार्गदर्शन कर सकें। |
वर्क-लाइफ बैलेंस को बढ़ावा दें | फ्लेक्सिबल वर्किंग आवर्स, वर्क फ्रॉम होम जैसी सुविधाएं लागू करें। |
व्यक्तिगत (Individual Level) पहल
पहल | विवरण |
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स्वयं जागरूक बनें | मानसिक स्वास्थ्य संबंधी लक्षणों को पहचानना सीखें और समय रहते मदद लें। |
समर्थन नेटवर्क बनाएं | दोस्तों, परिवार और सहकर्मियों के साथ अच्छे संबंध बनाएं और जरूरत पड़ने पर उनसे बात करें। |
तनाव प्रबंधन का अभ्यास करें | योग, ध्यान या खेलकूद जैसी गतिविधियां अपनाएं ताकि मानसिक संतुलन बना रहे। |
कलंक मिटाने में मदद करें | मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बातचीत करें ताकि दूसरों को भी मदद लेने में झिझक न हो। |
भारतीय संस्कृति के अनुरूप कदम क्यों जरूरी हैं?
भारत में पारिवारिक मूल्यों, सामाजिक अपेक्षाओं और कलंक (stigma) के कारण कई बार लोग अपनी समस्याओं को छुपाते हैं। ऐसे में कार्यस्थल का सहायक वातावरण, संवेदनशील संवाद और संस्कृतिसम्मत हस्तक्षेप अत्यंत प्रभावी साबित हो सकते हैं। संगठनों को चाहिए कि वे भारतीय कर्मचारियों की सांस्कृतिक जरूरतों का ध्यान रखते हुए उपाय अपनाएं। जैसे – धार्मिक आयोजनों में भागीदारी, सामूहिक ध्यान सत्र, या परिवारजनों के लिए काउंसलिंग सुविधा देना आदि।
संक्षिप्त सुझाव तालिका:
स्तर | प्रमुख कदम |
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नीतिगत स्तर | मानसिक स्वास्थ्य नीति, लीव पॉलिसी में बदलाव, जागरूकता अभियान |
संगठनात्मक स्तर | हेल्पलाइन, ओपन डोर पॉलिसी, मेंटरशिप प्रोग्राम, वर्क-लाइफ बैलेंस |
व्यक्तिगत स्तर | स्वयं जागरूकता, समर्थन नेटवर्क, तनाव प्रबंधन, कलंक मिटाना |
इन पहलों को अपनाकर भारतीय कार्यस्थलों को अधिक सुरक्षित, स्वस्थ और सहयोगी बनाया जा सकता है जहां हर कर्मचारी अपने मन की बात खुलकर रख सके तथा ज़रूरत पड़ने पर समय रहते सहायता पा सके।